श्रीलंका का इतिहास
श्रीलंका पर प्राचीन समय में शाही सिंहला वंश का शासन हुआ करता था । श्रीलंका में दक्षिण भारतीय राजवंशों ने भी शासन किया है । और तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेंन्द्र ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया ।
श्रीलंका द्वीप पर बालंगोडा लोगों का निवास कोई 34,000 वर्ष पूर्व से था इन्होंने मेसोलिथिक शिकारी संग्रहकर्ता के रूप मे जाना चाहता है ।जौ और कुछ अन्य खाद्दान्रों से द्वीपनिवासियों का परिचय ईसा पूर्व 15000 ईस्वी तक हो गया था । प्राचीन मिस्र में ईसा पूर्व 1500 ईस्वी के पास दालचीनी उपलब्ध थी जिसका मूल श्रीलंका को माना जाता है । अर्थात ऐसा माना जाता है कि उस समय इन दोनों देशों के बीच व्यापार होता होगा । अंग्रेज यात्री और राजनयिक ने श्रीलंका के शहर गाले की पहचान हीब्रू बाइबल में वर्जित स्थान टार्शिश से की है ।
पुराने भारतीय ग्रंथों के अनुसार इस स्थान का वर्णन लंका के रूप में किया गया है । ऐसा माना जाता है कि लंका का राजा रावण होता था जो कि राक्षस जाति से था । बौद्ध ग्रंथ और अन्य ग्रंथो में दिए गए विवरण के अनुसार इस द्वीप पर भारतीय आर्यों के आगमन से पूर्व यक्ष तथा नागों का वंश था ।
मौर्य सम्राट अशोक ने जब कलिंग का युद्ध लड़ा तो उसमें 1लाख लोगों की मौत हो गई इस जनहानि के कारण अशोक ने सम्राट की उपाधि छोड़ दी और बौद्ध धर्म को अपना लिया और उन्होंने हर जगह बौद्ध धर्म का प्रचार किया इसलिए तीसरी सदी ईसा पूर्व में अशोक के पुत्र महेंद्र श्रीलंका आए थे और वहां पर बौद्ध धर्म का प्रचार किया और तब श्रीलंका में देवनमपिया तिस्सा का शासन होता था इन्होंने शासन (250 -210 Bc) तक किया था ये दोनों बहुत गहरे दोस्त थे । इसलिए श्रीलंका में बौद्ध धर्म का आगमन हो पाया । देवनमपिया तिस्सा के मरने के बाद उनके जेष्ठ पुत्र कवन तिस्सा श्रीलंका में शासन किया परंतु उनके शासनकाल में एलारा नामक चोल शासक से युद्ध होने पर वह हार गए । और श्रीलंका पर चोल शासकों का शासन हो गया और उसी समय दक्षिण भारत में पांडवों का उदय हुआ और इन्होंने श्रीलंका पर धावा बोल दीया और चोल शासकों को हरा दिया हराने के बाद पांडू इस द्वीप का पहला पांडव शासक बना । फिर पांडव के आखिरी शासक मनवम्मा (684-718 AD) को पल्लवों की मदत से हरा दिया। अगले तीन सदियों तक पल्लवों के अधीन रहने के बाद दक्षिण भारत में पांड्यों का फिर से उदय हुआ । पांड्यों ने अनुराधपुरा पर आक्रमण करके उसे लूट लिया। परंतु इसी समय सिंहलियों ने पांड्यों पर आक्रमण किया और उन्होंने पांड्यों के नगर मदुरै को लूट लिया।
फिर दसवीं सदी में चोलों का उदय हुआ और राजेन्द्र चोल प्रथम ने सबको दक्षिण-पूर्व की ओर खदेड़ दिया। फिर 1055 ईस्वी में विजयबाहु ने वापस पूरे द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया। 13 सदी के आरंभ में कलिंग के राजा माघ ने तमिळ तथा केरलाई लड़ाकों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया । उसके बाद के शासकों के समय में राजधानी अनुराधपुरा से दक्षिण की तरफ़ खिसकती गई और कैंडी पहुंच गई। और साथ ही जाफना का उदय एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में हुआ। पराक्रम बाहु षष्ठ 1411-66 शक्तिशाली शासक था जिसने श्रीलंका को अपने अधीन कर लिया। वो कला का भी बड़ा आदर करता था । उसके शासनकाल में राजधानी कोट्टे कर दी गई जो जयवर्धनपुरा के नाम जाना जाता है ।
श्रीलंका में 16 वीं शताब्दी में यूरोपियन लोगों ने अपना कदम रखा । यूरोपियन लोगो ने श्रीलंका को व्यापार का केंद्र बना दिया देशभर में चाय रबड, चीनी ,कॉफी ,दालचीनी और अन्य मसालों का व्यापार चालू कर दिया । पहले पुर्तगाल ने कोलम्बो के पास अपना दुर्ग बनाया। और कुछ समय के बाद पुर्तगालियों ने अपना वर्चस्व कुछ इलाकों में बना लिया। फिर श्रीलंका के निवासियों में उनके प्रति नफरत होने लगी। उन्होने डच लोगो से मदत मांगी और 1630 इस्वी में डचों ने पुर्तगालियों पर आक्रमण किया और उन्हे मार दीया। पर उन्होने आम लोगों पर और भी जोरदार कर लगाए। फिर 1660 में एक अंग्रेज का जहाज गलती से इस श्रीलंका मे आ गया । उसे कैंडी के राजा ने कैद कर लिया। उन्नीस साल तक कारागार में रहने के बाद वह यहां से भाग निकला और उसने अपने अनुभवों पर आधारित एक पुस्तक लिखी जिसके बाद अंग्रेजों का ध्यान भी इसपर गया। नीदरलैंड पर फ्रांस के अधिकार होने के बाद अंग्रेजों को डर हुआ कि श्रीलंका के डच इलाकों पर फ्रांसिसी अधिकार हो जाएगा। इसलिए उन्होने डच इलाकों पर अधिकार करना शुरू किया । 1800 इस्वी के आते आते तटीय इलाकों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। 1818 तक अंतिम राज्य कैंडी के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह पूरे श्रीलंका के क्षेत्रों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
भारत से श्रीलंका कब अलग हुआ
अंग्रेजो के खिलाफ 1930 मे स्वाधीनता आंदोलन तेज हो गया इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद 4 फरवरी 1948 मे श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रा दे दी गई ।
श्रीलंका का पुराना नाम क्या है
श्रीलंका का 1972 सीलोन नाम था और जिसे 1972 में बदलकर लंका तथा परंतु 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया।
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