जहीरूद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर कौन थे
जहीरूद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 मे अन्दीझान मे हुआ था जो कि वर्तमान समय में उज्बेकिस्तान है ।बाबर भारत में 1526 में आया था ।और इसने दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को 1526 के पानीपत के युद्ध में हरा दिया था ।और दिल्ली सल्तनत पर राज किया और बाबर की मौत 1530 में हो गई थी ।
उनके जीवन का परिचय
बाबर का जन्म फरगना वादी के अन्दीझान नामक शहर में हुआ था ।जो कि वर्तमान समय में उज्बेकिस्तान में है ।उनके पिता उमर शेख मिर्जा ,जो कि फरगना घाटी के शासक थे ।और इनकी माता का नाम कुतलुग निगार खानम था ।और बाबर की मातृभाषा चंगताई भाषा थी ।और वहां की आम भाषा फारसी थी ।
जहीरूद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर को उनके पूरे नाम से क्यों नहीं बुलाया जाता था ।
उनके चचेरे भाई मोहम्मद हैदर ने अपने पुस्तक मैं बताया है कि उस समय के चूंगताई लोग जब असभ्य तथा संस्कृत थे तब उन्हें जहीरूद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर का पूरा नाम लेने में कठिनाई महसूस होती थी ।इसलिए उन्होंने इनका नाम बाबर रख दिया ।
बाबर ने सत्ता कब संभाली
सन् 1494 में 12 साल की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया ।और फरगना घाटी के शासक के गद्दी पर उन्हें बैठा दिया गया ।उनके परिवार जनों ने इस चीज का फायदा और बाबर को गद्दी से हटा फेंका ।इन्होंने कई वर्षों तक निर्वासन में समय बिताया।उन्होंने उसके बाद अपने सगे संबंधियों के साथ मिलकर 1496 मे उजबेक शहर के समरकंद पर आक्रमण कर दिया और उसे 7 महीने के बाद सफलता भी प्राप्त हो गई ,इसी बीच जब वह समरकंद पर आक्रमण कर रहा था तब उसके एक सैनिक सरगना ने फरगना पर अपना आधिपत्य जमा लिया।जब वह फरगना पर वापस शासन करने आ रहा था तभी उसके सैनिक समरकंद में साथ छोड़ दिया। इसी कारण से फरगना और समरकंद दोनों उसके हाथों से चले गए । और उसके बाद सन् 501 में उसने फिर से समरकंद पर अपना अधिकार जमा लिया पर उज्बेक खान मोहम्मद शैबानी ने बाबर को हरा दिया ओ समरकंद पर अपना अधिकार जमा लिया ।इसी तरह समरकंद बाबर के हाथों से दो बारा निकल गया ।
काबुल पर बाबर का आक्रमण
सन् 1504 मे हिंदुकुश पर्वत की बर्फी ले चोटियों को पार करके उसने काबुल पर अपना साम्राज्य स्थापित किया ।और उसके बाद हैरत के एक तैमूरवंशी हुसैन बैकरह,के साथ मिलकर मोहम्मद शायबानी के विरोध सहयोग की संधि की ।पर 1506 में हुसैन की मौत के कारण ऐसा होना पाया और उसने हैरत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।परंतु साधन ना होने पर उन्हें दो महीनों में हैरत छोड़ना पड़ा ।
जब बाबर 2 वर्ष के बाद काबुल वापस आए तो उनके खिलाफ सरगना ने विद्रोह किया और उसे काबुल से भागना पड़ा । जल्द ही उसने काबुल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।और सन् 1510 में फ़ारस के शाह इस्माईल प्रथम, जो सफ़ीवी वंश का शासक था, ने मुहम्मद शायबानी को हराकर उसकी हत्या कर दी। इस अवस्था को देखकर बाबर ने हेरात पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया। इसके बाद उसने शाह इस्माईल प्रथम के साथ मध्य एशिया पर मिलकर अधिकार जमाने के लिए एक समझौता किया।और शाह इस्माईल की मदद के बदले में उमने साफ़वियों की श्रेष्ठता स्वीकार की तथा खुद एवं अपने अनुयायियों को साफ़वियों की प्रभुता के अधीन समझा। इसके उत्तर में शाह इस्माईल ने बाबर को उसकी बहन ख़ानज़दा से मिलाया जिसे शायबानी, जिसे शाह इस्माईल ने हाल ही में हरा कर मार डाला था, और कैद में रख़ा हुआ था और उससे विवाह करने की कई कोशिश कर रहा था। शाह ने बाबर को ऐश-ओ-आराम तथा सैन्य हितों के लिये पूरी सहायता दी जिसका ज़बाब बाबर ने अपने को शिया परम्परा में ढाल कर दिया। उसने शिया मुसलमानों के अनुरूप वस्त्र पहनना आरंभ किया। शाह इस्माईल के शासन काल में फ़ारस शिया मुसलमानों का गढ़ बन गया और वो अपने आप को सातवें शिया इमास मूसा अल काजिम का वंशज मानता था। वहाँ सिक्के शाह के नाम में ढलते थे तथा मस्जिद में खुतबे शाह के नाम से पढ़े जाते थे हालाँकि क़ाबुल में सिक्के और खुतबे बाबर के नाम से ही थे। बाबर समरकंद का शासन शाह इस्माईल के सहयोगी की हैसियत से चलाता था।
शाह की मदद से बाबर ने बुखारा पर चढ़ाई की। वहाँ पर बाबर, एक तैमूरवंशी होने के कारण, लोगों की नज़र में उज़्बेकों से मुक्तिदाता के रूप में देखा गया और गाँव के गाँव उसको बधाई देने के लिए खाली हो गए। इसके बाद फारस के शाह की मदद को अनावश्यक समझकर उसने शाह की सहायता लेनी बंद कर दी। अक्टूबर 1511 में उसने समरकंद पर चढ़ाई की और एक बार फिर उसे अपने अधीन कर लिया। वहाँ भी उसका स्वागत हुआ और एक बार फिर गाँव के गाँव उसको बधाई देने के लिए खाली हो गए। वहाँ सुन्नी मुलसमानों के बीच वह शिया वस्त्रों में एकदम अलग लग रहा था। हालाँकि उसका शिया हुलिया सिर्फ़ शाह इस्माईल के प्रति साम्यता को दर्शाने के लिए थी, उसने अपना शिया स्वरूप बनाए रखा। यद्यपि उसने फारस के शाह को खुश करने हेतु सुन्नियों का नरसंहार नहीं किया पर उसने शिया के प्रति आस्था भी नहीं छोड़ी जिसके कारण जनता में उसके प्रति भारी अनास्था की भावना फैल गई। इसके फलस्वरूप, 8 महीनों के बाद, उज्बेकों ने समरकंद पर फिर से अधिकार कर लिया।
भारत पर बाबर का कब्जा
पानीपत का युद्ध (1526).
दिल्ली सल्तनत का आखरी शासक इब्राहिम लोदी को बाबर ने युद्ध के लिए लडकरा परंतु इब्राहिम लोदी ने उसका जवाब नहीं दिया इसी बीच बाबर ने छोटे-छोटे हमले करना चालू किया परंतु जब इसका प्रभाव नहीं पड़ा तो बाबर ने अपनी सेना को लेकर दिल्ली सल्तनत पर हमला बोल दिया तब इब्राहिम लोधी और बाबर आमने सामने थे।यह युद्ध पानीपत में लड़ी गई थी इसलिए यह युद्ध पानीपत का प्रथम युद्ध कहलाता है जो कि 21 अप्रैल 1526 में लड़ी गई थी ।दोनों सेनाओं पर बारूदी हथियार थे और इब्राहिम लोदी की सेना बाबर की सेना से बड़ी थी तब भी इब्राहिम लोदी की सेना बाबर की सेना के सामने टिक नहीं सकी ।और बाबर दिल्ली सल्तनत को जीत गया तभी से दिल्ली सल्तनत पर मुगलों का राज हुआ ।
राजपूत और बाबर का युद्ध
राणा सांगा के नेतृत्व मे राजपूत अधिक शक्तिशाली होते जा रहे थे ।राणा सांगा ने बाबर को युद्ध के लिए लटकाया और युद्ध शुरू होने पर बाबर की सेना राणा सांगा की सेना की आधी भी नहीं थी ।17 मार्च 1527 को खानवा में यह युद्ध हुआ ।ऐसा लग रहा था कि राणा सांगा यह युद्ध आसानी से जीत जाएंगे परंतु राणा सांगा के घायल होने पर उनके साथियों ने उन्हें उस युद्ध से बाहर कर दिया इसी कारण से राजपूत जीता हुआ युद्ध हार गए उसी के 1 वर्ष के बाद 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा की मौत हो गई ।
चंदेरी का आक्रमण
बाबर ने जब राणा सांगा को हराकर मेवाड़ को जीत लिया था ।तब बाबर ने अपनी सेनाओं को पूर्व की ओर विद्रोहियों को दमन करने के लिए भेजा ।क्योंकि पूर्व में बंगाल के शासक नुसरत शाह ने अफगानो को पना दिया था ।और उनका समर्थन भी किया था बाबर ने यह सोचा था कि उनके अधिकारी अफगानों का दमन कर देंगे परंतु ऐसा ना हुआ इसलिए बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण करने का विचार किया चंदेरी के राजपूत मेदिनराय खंगार ने राणा सांगा का युद्ध में साथ दिया था ।इससे यह पता चलता है कि बाबर राजपूतों को पूरी तरह से खत्म करना चाहता था ।और बाबर ने अपनी सेना को चंदेल भेजा परंतु राजपूतों ने उन्हें बाहर खदेड़ दिया इसी कारण बाबर ने स्वयं जाने का फैसला किया।तो इसकी तारीख 21 जनवरी 1528 रखी क्योंकि बाबर सोच रहा था कि वह चंदेर के मुसलमानों को अपनी साइड कर ले और चंदेरी की मुसलमानों और राजपूतों के बीच टकराव लाना चाहते थे ।बाबर ने चंदेरा के शासक मेदिनराय खंगार को संदेश भेजा कि वह शांति पूर्ण रूप से चंदेरा का समर्पन कर दे परंतु ऐसा ना हुआ चंदेरा के शासक ने उसे अस्वीकार कर दिया और उसके बाद उनके बीच युद्ध छिड़ गया और राजपूतों ने बहुत भयंकर युद्ध किया परंतु बाबर ने युद्ध में तोपों का इस्तेमाल किया जिससे राजपूत उनके सामने टिक ना सके और 1 घंटे में युद्ध खत्म हो गया उसके बाद बाबर ने चंदेल पर अपना अधिकार स्थापित किया और चंदेल के नए शासक अहमद शाह को बना दिया ।
घाघरा का युद्ध
महमूद लोदी ने बिहार में एक लाख सैनिकों का नेतृत्व किया और उसके बाद पूर्वी क्षेत्रों में आक्रमण शुरू कर दिया ।इसी बीच इन का युद्ध बाबर से हुआ और युद्ध समाप्त होने के बाद बाबर जनवरी 1529 ईस्वी में आगरा गया आगरा में कई अफगानी ने उसकी अधीनता स्वीकार की लेकिन मुख्य अफगान जिसे बंगाल के नुसरत शाह का समर्थन प्राप्त था ।उसके साथ बाबर का युद्ध हुआ बाबर ने उसे बुरी तरह हरा दिया और नुसरत शाह से संधि कर ली जिससे नुसरत शाह अफगान विद्रोहियों को चरण ना देने का वचन दिया और बाबर ने अफगान जलाल खान को अपने अधीन किया जो कि बिहार का शासक था और उसे बाबर ने आदेश दिया कि शेर खां को अपना मंत्री बना ले ।
बाबर की मौत
लोग ऐसा मानते हैं कि हिमायू के बीमार पड़ने पर बाबर ने अल्लाह से हिमायू को स्वस्थ करने और उसकी बीमारियों को खुद पर लेने की प्रार्थना की थी ।उसके बाद बाबर की तबीयत खराब होने लगी और उनकी 1530 मे जब वह 48 वर्ष के थे तब उनकी मौत हो गई ।उनकी आखिरी इच्छा यह थी कि उनके मकबरे को काबुल में दफनाया जाए परंतु उन्हें आगरा में दफनाया गया उसके 9 वर्ष के बाद हिमायू ने उनकी इच्छा पूरी की और उन्हें काबुल मे राजाराम जाट में दफना दिया गया
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