कर्ण कौन था
कर्ण को महाभारत का महानायक भी कहा जाता है यह वही कर्ण है जिसके एक निर्णय से महाभारत की गाथा पलट गई जब उन्होंने अपने अंग के हिस्से का दान कर दिया मतलब जब उन्होंने अपने कवच और कुंडल का दान कर दिया क्योंकि वह उनके अंगों के ही हिस्से थे जब तक वह उनके साथ थे तो कोई भी दिव्यास्त्र उनकी मृत्यु नहीं कर सकता था ।
कर्ण का पिछला जन्म
हम कर्ण के पूर्व जन्म के बारे में बात करेंगे ।ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में दंभोद्भवा नामक एक कसूर था ।जो कि सूर्य की कड़ी तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर लिया और उनसे यह वरदान मांगा कि उसे ऐसा कवच दे की जिसे केवल वही तोड़ सके जिसने हजार वर्ष की तपस्या की हो और जिसने यह कवच तोड़ा तो उसकी तुरंत मौत हो जाएगी ।और उसे सूर्य देव ने यह वरदान उसे दे दिया ।उस कवच को प्राप्त करके उस दानव ने तीनो लोको में तबाही मचा दी और तभी सारे देवता विष्णु जी के पास गए और विष्णु जी ने देवताओं को यह आश्वासन दिया कि वह उस दानव को खत्म कर देंगे । तभी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री मूर्ति का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र धर्म से कर दिया ।
इनके दो जुड़वा बच्चे हुए जिनका नाम नर और नारायण था ।यह दोनों अलग होकर भी एक थे । जब यह दोनों भाई बड़े हुए तो एक भाई तपस्या करने के लिए चला गया और दूसरा भाई दंभोद्भवा राक्षस को मारने चला गया ।नर और दंभोद्भवा मे घमासान युद्ध हुआ ।युद्ध में नर ने दंभोद्भवा राक्षस का एक कवच तोड़ दिया और कवच टूटने से नर की वही मौत हो गई ।तभी उसका भाई नारायण वहां दौड़ते हुए आया ।और जाकर अपने भाई के पास बैठ गया वहां बैठे हुए वह मंत्र पढ़ने लगा तभी उसका भाई नर तभी उठ कर खड़ा हो गया ।यह देख कर दंभोद्भवा राक्षस आश्चर्यचकित हो गया ।उसने पूछा कि यह कैसे हो गया ।तभी नारायण ने कहा कि मैंने शिवजी की हजार वर्ष तपस्या की उस तपस्या मैं मुझे महामृत्युंजय की सिद्धि मिली है । उसके बाद नारायण ने बताया कि सहस्त्र कवच के प्रभाव से उसने अपने भाई नर को जीवित किया है अब तुमने सहस्त्र कवच को ललकारा है उसने अपने भाई नर को तपस्या में बिठा दिया 1000 वर्ष तो होते ही शास्त्र कवच टूट गया और नारायण की मृत्यु हो गई तब नर ने आकर नारायण को जीवितइसी रूप में द्वापर युग में जब सूर्य देव के वरदान से कर्ण का जन्म हुआ कर दिया यह चक्र ऐसा ही चलता रहा कभी नर ने नारायण को जीवित करा तो कभी नारायण ने नर को जीवित करा 999 कवच होते ही राक्षस सूर्य देव की चरण में भाग गया नर और नारायण उसे मारने सूर्यदेव के पास गए परंतु सूर्यदेव ने मना कर दिया उसे मारने से सूर्य देव ने कहा कि शरण में आए हुए शरणार्थी कि मैं रक्षा करूंगा नारायण ने सूर्य देव को श्राप दे दिया कि तुम भी पाप के भागीदार बने हो इस राक्षस के साथ तुम्हें इस बात का भार अगले जन्म में उठाना पड़ेगा इसी वजह से द्वापर युग सूर्य देव के वरदान से कर्ण का जन्म हुआ और जोक कुंडल और कवच करने पहने थे मैं सहस्त्र कवच की आखिरी निशानी थी वह हजार वा सहस्त्र कवच था
कर्ण का जन्म
कर्ण का जन्म सूर्यदेव के वरदान से हुआ था कर्ण कवच कुंडल के साथ पैदा हुआ था कर्ण माता कुंती का प्रथम पुत्र था लेकिन उन्होंने उसे त्याग दिया था बाद में कर्ण का पालन पोषण अधिरथ के यहां हुआ जिसके कारण सब करण को सूत्र पुत्र कहते थे कांड शक्तिशाली योद्धा था और प्रतिभाशाली भी था करण को धनुर्विद्या की शिक्षा गुरु परशुराम ने दी थी परंतु जब उन्हें यह पता चला कि करण सूत पुत्र है तो उन्होंने उसे श्राप दे दिया क्योंकि वह ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे कर्ण टूट गया और अपनी दुखी भरी गाथा उन्होंने गुरू परशुराम को सुनाई परशुराम भावुक हो गए उसकी गाथा सुनकर उन्होंने उसे महादेव का विजय धनुष दिया या धनुष इतना ताकतवर था कि जिसके हाथ में भी वह धनुष होगा वह कभी हार नहीं सकता था उसके बाद का एक अंग देश का राजा घोषित करा दिया गया जब महाभारत का युद्ध शुरु होने वाला था तब देवराज इंद्र ने छल से करण से उसका कवच और कुंडल ले लिया लेकिन करण ने दानवीर होने की वजह से कवच कुंडल दान कर दिया उसके बाद महाभारत का युद्ध शुरू हो गया करण ने युद्ध में 11 दिन प्रवेश किया उसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने चालाकी से कर्ण का अमोघ शक्ति अस्त्र मतलब वैशावी अस्त्र का प्रयोग करवा दिया इसके बावजूद कारण में कई महारथी और रथी और सैनिकों को अकेले ही मृत्यु के घाट उतार दिया
यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण चिंतित हो गए थे द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद कारण को कौरव सेना का प्रधान सेनापति घोषित किया 16 दिन करण ने महादेव का विजय धनुष उठाया और रणभूमि में कोहराम मचा दिया एक सुनामी की तरह पांडव सेना पर टूट गया अर्जुन भी कान का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था क्योंकि 16 दिन लगातार युद्ध करने से वह थक चुका था भगवान श्रीकृष्ण जान चुके थे कि अब अर्जुन कर्ण का वध नहीं कर सकता 16 दिन समाप्त हुआ 17 दिन कारण ने चारों पांडवों को जीवनदान दिया जैसा कि उसने अपनी माता कुंती को वचन दिया था परंतु उसका श्रापित जीवन उसी क्षण उसके सामने आ गया उसके जीवन में उसे 3 श्राप मिले थे धरती माता का ब्राह्मण का और गुरु परशुराम का करण का पहिया जमीन में धंस गया और वह अपनी धनुर्विद्या भूल गया उसने सबसे बड़ी गलती यह की कि उसने विजय धनुष जमीन पर रख दिया क्योंकि जिसके पास वह धनुष रहता उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी करण ने धनुष को नीचे रख के रथ के पहिए को खींचने लगा उस ने अर्जुन से कहा।
अर्जुन मेरे रथ का पहिया जमीन में धंस गया है पहिया निकालने के पश्चात हम युद्ध फिर से प्रारंभ करेंगे परंतु तभी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से करण को मारने को कहा क्योंकि अगर कर्ण की मृत्यु तब नहीं होती तो कौरव सेना को हराना नामुमकिन था अर्जुन ने अंजलिका बाण का संघार किया और कर्ण का वध कर दिया और इस तरह महाभारत के महानायक का अंत हो गया
कर्ण के कवच कुंडल का रहस्य
अब रही बात कवच कुंडल की वह कहां गए तो कई पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि जब देवराज इंद्र कवच कुंडल लेकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान करा तो उन्होंने वह कवच और कुंडल समुंदर के पास कहीं छुपा दिए क्योंकि छल द्वारा प्राप्त करी हुई चीज स्वर्ग में नहीं ले जा सकते कहा जाता है कि कवच कुंडल की देखभाल समुंदर देव और चंद्र देव एक साथ करते थे एक बार चंद्रदेव ने उन्हें चुराने की योजना बनाई परंतु सूर्य देव और समुद्र देव ने उन्हें रोक दिया इसके बाद कवच कुंडल की देखभाल सूर्य देव और समुद्र देव एक साथ करते हैं मगर यह किसी को नहीं पता कि वह कहां है ।
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