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पाकिस्तान में चीफ जस्टिस ने इस मंदिर में मनाई दीपावली , वहां आग लगा दी गई ।


पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गुलज़ार अहमद ने कहा है कि हर इंसान को अपने धर्म की रक्षा करने का हक़ है. पाकिस्तान के संविधान में जो लिखा है, वही सबसे ऊपर है और उसी से देश चल रहा है और हमेशा चलता रहेगा. 

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अहमद सोमवार को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के करक ज़िले के टेरी गांव में हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि पर दिवाली समारोह मे गए थे । इस मंदिर को दिसंबर 2020 में स्थानीय लोगों के गुस्से के कारण से तोड़ दिया गया था यह मंदिर 100 साल पुराना था न्यायधीश जस्टिस अहमद ने इस मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था.

वहां की हिंदू परिषद  के आमंत्रण पर जस्टिस गुलजार अहमद मंदिर पहुंचे और उन्होंने कहा कि हिंदुओं के लिए जो कुछ भी मैंने किया वह एक जज के रूप में उनकी जिम्मेदारी थी ।

पिछले वर्ष दिसंबर में जब लोगों की भीड़ ने इस मंदिर को खंडित करते हुए आग लगा दी, तो मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अहमद ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए बहुत कड़ा रुख़ अख़्तियार किया था और मरम्मत का आदेश दिया था.

अब मंदिर की मरम्मत का काम क़रीब-क़रीब पूरा हो चुका है. सोमवार की शाम पूरे पाकिस्तान से सैकड़ों लोग दिवाली मनाने के लिए टेरी मंदिर में जमा हुए. नवनिर्मित मंदिर को रोशनी और फूलों से सजाया गया.

इस मौके पर सिंध से पाकिस्तान की पहली हिंदू महिला एडवोकेट जनरल कल्पना देवी ने कहा कि  अल्पसंख्यक जहाँ भी रहते हैं, वहां कुछ समस्याएं होती हैं. उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक बेहतर दशा में हैं और कोई भी समस्या होने पर उच्च स्तर पर उनकी आवाज़ सुनी जाती है.  ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के बन्नू शहर से आए एक श्रद्धालु आकाश अजीत भाटिया ने कहा कि वो फिर से बने मंदिर में आकर बहुत खुश हैं और इसके लिए पाकिस्तान सरकार के आभारी हैं, जिसने विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सद्भाव बर्बाद करने की मंशा रखने वालों के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई की. आकाश अजीत भाटिया ने कहा कि ''ये पागलपन पर समझदारी की जीत है.''

सिंध से आईं सृष्टि ने कहा, ''केवल मुख्य न्यायाधीश के हस्तक्षेप के कारण ही आज हम इस मंदिर में इकट्ठा हो सके हैं.''

हालांकि, पाकिस्तान का हिंदू समुदाय अभी भी चिंतित है. ऐसा इसलिए कि इस मंदिर पर पहली बार हमला नहीं हुआ और न ही इसे पहली बार फिर से बनाया गया. 1997 में इसी तरह की एक घटना हुई थी और तब भी मंदिर का मरम्मत हुआ था.

 हालांकि मुख्य न्यायाधीश के दौरे के बाद हिंदू समुदाय को उम्मीद है कि इतिहास फिर से ख़ुद को नहीं दोहराएगा और वे शांति से पूजा-पाठ कर सकेंगे.

टेरी में स्थित हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि को तहस-नहस करने की घटना दिसंबर 2020 में हुई थी. इस घटना के सामने आने के बाद चीफ़ जस्टिस की अगुवाई में तीन जजों की पीठ ने जनवरी में मामले की सुनवाई की.

 सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दो हफ़्ते के अंदर  इस मंदिर को फिर से बनाने का काम शुरू करने का हुकुम दिया ।

सुनवाई के दौरान ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी कोर्ट में मौजूद थे. सुप्रीम कोर्ट में पुलिस आईजी सनाउल्लाह अब्बासी ने बताया था कि इस मामले में 92 पुलिस वालों को निलंबित किया गया. इसमें एसपी और डीएसपी भी शामिल थे. साथ ही, बताया कि उस घटना को अंजाम देने वाले 109 लोग गिरफ़्तार किए गए. पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि एक मौलवी शरीफ़ ने हिंसा के लिए भीड़ को भड़काया था.

चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने कहा था कि सरकार के आदेश का किसी भी स्थिति में पालन होना चाहिए. उनके अनुसार, उस घटना ने पाकिस्तान की छवि दुनिया भर में ख़राब की. उन्होंने कहा कि इस मामले में शामिल लोगों को गिरफ़्तार करना काफी नहीं है.

 ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के मुख्य सचिव डॉ. काज़ीम नियाज़ ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया था कि प्रांतीय सरकार मंदिर को फिर से बनाने का ख़र्च उठाएगी. इस पर चीफ़ जस्टिस ने सरकार से समाधि में आग लगाने वालों से पैसे वसूलने को कहा था. जस्टिस अहमद ने कहा था कि वो ऐसा दोबारा करेंगे, यदि उनकी जेब से पैसे नहीं निकले.

इस मामले के अंदर 123 व्यक्तियों से क़रीब 3.3 करोड़ पाकिस्तानी रुपये की वसूली करने का आदेश मिला था. हालांकि अब इसका ज्यादातर हिस्सा अभियुक्तों से वसूल कर लिया गया है.

 चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के चेयरमैन को आदेश दिया था कि वो जल्द से जल्द घटनास्थल पर जाए और मंदिर के पुनर्निमाण का काम शुरू करवाएं. असल में ये समाधि इवैक्यू ट्रस्ट बोर्ड की संपत्ति है. 

अदालत ने साथ ही छोड़ी गई सभी वक़्फ़ संपत्तियों के साथ बंद पड़े मंदिरों और खुले मंदिरों का पूरा लेखा-जोखा भी सरकार से मांगा था. ख़ाली पड़ी वक़्फ़ संपत्तियों पर जिन अधिकारियोंने अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का भी निर्देश चीफ़ जस्टिस ने दिया था. उन्होंने तब दो हफ़्तों के अंदर ये सारी रिपोर्टें पीठ के सामने पेश करने को कहा था.

चीफ़ जस्टिस ने नुक़सान के पैसे वसूलने का आदेश देने के साथ हिंदू समुदाय से कहा था कि यदि वे अभी भी अपने मंदिर का विस्तार करना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं. साथ ही कहा कि यदि उन्हें किसी चीज की ज़रूरत हो, तो प्रांतीय सरकार इस काम में उनकी मदद करेगी.

 पुलिस के मुताबिक़, स्थानीय लोग एक हिंदू नेता के अपना घर समाधि से सटाकर बनाने को लेकर नाराज़ थे. इलाक़े के कट्टरपंथी लोग इस समाधि स्थल का बहुत पहले से विरोध कर रहे थे.

1997 में इस समाधि पर पहली बार स्थानीय लोगों ने हमला किया था. हालांकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह की प्रांतीय सरकार ने बाद में इसका पुनर्निमाण करा दिया था.

 सरकार के समर्थन और कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद टेरी में हालात तनावपूर्ण बने रहे. समाधि के पुनर्निमाण शुरू करने से पहले स्थानीय प्रशासन ने टेरी के कट्टरपंथी लोगों से लंबी बातचीत की थी.

साल 2015 में ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के एडिशनल एडवोकेट जनरल वक़ार अहमद ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट में इस सिलसिले में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग जब पांच शर्तों पर तैयार हो गए, तब जाकर समाधि के दोबारा निर्माण की इजाज़त दी गई थी.

ऐसा कहा जाता है कि समझौते की ये शर्त थी कि हिंदू समुदाय के लोग टेरी में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे. वे वहां पर केवल अपनी धार्मिक प्रार्थनाएं कर सकेंगे. समाधि पर उन्हें न तो बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने की इजाज़त होगी और न ही समाधि स्थल पर किसी बड़े निर्माण कार्य की मंज़ूरी दी जाएगी.

 इसके अलावा, हिंदू समुदाय के लोग उस इलाक़े में ज़मीन भी नहीं ख़रीद सकेंगे और उनका दायरा केवल समाधि स्थल तक ही सीमित रहेगा.

इस मंदिर का निर्माण उस जगह कराया गया था, जहां हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज का निधन हुआ था. साल 1919 में यहीं पर उनकी अंत्येष्टि की गई थी. उनके अनुयायी यहां पूजा-पाठ के लिए हर साल आते रहे थे.

 लेकिन साल 1997 में ये सिलसिला उस वक़्त रुक गया जब ये मंदिर ढहा दिया गया. इसके बाद हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज के अनुयायियों ने मंदिर के पुननिर्माण की कोशिशें शुरू कीं.  हिंदू समुदाय के लोगों का आरोप था कि एक स्थानीय मौलवी ने सरकारी ट्रस्ट की प्रॉपर्टी होने के बावजूद इस पर क़ब्ज़ा कर लिया था. यह संपत्ति औक़ाफ़ विभाग से ताल्लुक़ रखती है, जिसका काम प्रांत में धार्मिक स्थलों की देखरेख करना है. 2020 में मंदिर के जुड़ने के बाद अब जाकर फिर से इसका पुनर्निर्माण हुआ है.



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