कोहिनूर हीरा क्या है
कोहिनूर हीरा 105 कैरेट का है जो कि विश्व का सबसे बड़ा हीरा रह चुका है कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत ही पुराना है ऐसा माना जाता है कि कोहिनूर हीरा लगभग 5000 हजार वर्ष पूर्व महाभारत के युग में मिला था लोग ऐसा बताते हैं कि कोहिनूर हीरे को प्राचीन संस्कृत भाषा में स्यमंतक मणि कहा जाता था ऐसा बताते हैं। कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि ,जामवंत से ली था । जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। एक अन्य कथा अनुसार यह हीरा दक्षिण भारत के कृष्णा नदी के पास गोलकुंडा की खान से प्राप्त हुआ था ये खदाने वर्तमान समय में आंध्र प्रदेश में स्थित है ।
उद्गम और इतिहास
16 वीं शताब्दी में साउथ अफ्रीका और ब्राजील के हीरो के खदानों से पहले भारत के गोलकुंडा के खदान प्रसिद्ध थे इन खदानों में ऐसे ऐसे दुर्लभ हीरे प्राप्त हुए हैं जो अपने आप ही में ही दुर्लभ है इन्हीं में से एक हीरा कोहिनूर हीरा है । यह हीरा 1304 में मालवा के राजा के पास था फिर उसके बाद 1339 में यह हीरा समरकंद मे 300 वर्ष तक रखा गया । उस समय में इस हीरे को लेकर कई कथन प्रचलित थे । ऐसा माना जाता था कि इस हीरे को कोई महिला और पवित्र पुरुष ही धारण कर सकता था । लेकिन इस हीरे को बुरा इंसान धारण करता है तो उसका पूरी तरह से सर्वनाश हो जाता है । इसके बाद यह हीरा कई राजाओं के पास रहा चौधरी शताब्दी में यह हीरा दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद खिलजी के पास रहा और इस हीरे के बारे में बाबरनामा में भी लिखा गया है कि 1526 के प्रथम पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने आगरा पर अपना कब्जा किया और उसकी सारी संपत्ति अपने अधीन कर ली उस संपत्ति में यह हीरा भी था इसके बाद यह हीरा मुगलों के पास कई वर्ष तक रहा ।
कुछ साल बाद शाहजहां ने एक सिंघासन बनाया और उस सिंहासन पर कई जवाहरात और हीरे को मठ कर दिया कई हजार सोने के सिक्के और कोई नहीं है कोहिनूर हीरे को भी उस सिंहासन पर मठ कर दिया तब उस सिंहासन का नाम तख्त-ए-मुरासा था । बाद में यह सिंहासन पीकॉक थ्रोन के नाम से जाना जाएगा कुछ दिन बाद इस सिंहासन को देखने एक जौहरी आया बादशाह नहीं हीरे की चमक मिटाने के लिए वह हीरा जोहरी को दे दिया जौहरी ने हीरो के कई टुकड़े कर दिए पहले यह हीरा 793 कैरेट का था और
अब 186 कैरेट का हो गया बादशाह ने जनवरी को सजा दी दंड के तौर पर जोहरी को ₹10000 का जुर्माना देना पड़ा उसके बाद हीरे का नाम बाबर डायमंड रखा गया कई सालों तक यह हीरा मुगलों के पास रहा बाद में नादिरशाह ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया और विजय अर्जित करी । उनसे वह हीरा छीन लिया उसके बाद उस हीरे का नाम कोहिनूर हीरा पड़ा । इस हीरे को देखने के लिए नादिरशाह ज्यादा समय तक ना रहे उन्हीं के अंग रक्षकों ने 1747 में उनकी हत्या कर दी उसके बाद यह हीरा जनरल अहमद दुलानी के पास गया उन्होंने इस हीरे को अपने कड़े में जड़वा लिया । उसके बाद यह हिरा भारत वापस आ गया उसके बाद यह हीरा सिखों के पास रहा 1849 में भारत में अंग्रेजों ने आक्रमण कर दिया और सीखो को हरा दिया इंडिया कंपनी हीरे को ले लिया यह हीरा उनके किसी काम का नहीं था इसलिए उन्होंने यह हीरा रानी विक्टोरिया को दे दिया । रानी विक्टोरिया ने हीरे के टुकड़े करवा दिए और 186 कैरेट से 105 कैरेट करवा दिया और उसके टुकड़े कर करके अपने मुकुट पर लगवा दिए लगभग उस हीरे के 2000 टुकड़े करवाए और अब यह हीरा लंदन के टावर में सुरक्षित है । इस हीरे को पाने का कई देश प्रयास कर रहे हैं परंतु आज भी यह हीरा लंदन में है ।
कोहिनूर हीरे को पाने के लिए किन-किन देशों ने प्रयास किया
भारत ने आजादी के बाद 1953 में कोहिनूर हीरे को भारत को वापस देने के लिए बात की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे देने से मना कर दिया ।
पाकिस्तान ने 1976 में कोहिनूर हीरे को वापस देने के लिए ब्रिटिश सरकार से बात की लेकिन इसके जवाब में ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स कैलाघन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फी अली भुट्टो को पत्र लिखा और यह कहा कि लाहौर के शांति समझौते के तहत महाराणा रंजीत सिंह ने ब्रिटिश सरकार को यह हीरा दिया था इसलिए वह कोहिनूर हीरा पाकिस्तान को नहीं देंगे ।
0 Comments