1961 की अप्रैल में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिंता सता रही थी कि अमेरिका साम्यवादियों द्वारा शासिती क्यूबा पर आक्रमण कर देगा और इस देश के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का तख्तापलट हो जाएगा क्यूबा अमेरिका के तट से लगा हुआ एक छोटा सा द्विपीय देश है क्योंकि क्यूबा की दोस्ती सोवियत संघ से थी और सोवियत संघ उसे कूटनी तथा वित्तीय सहायता देता था सोवियत संघ के नेता निकिता खुशचेवी ने क्यूबा को उसके सैनिक अड्डे के रूप में बदलने का फैसला लिया 1962 मे खुशचेवी ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरिका नजदीकी निशाने पर आ गया इसकी भनक अमेरिका को 3 हफ्ते बाद लगी अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी और उनके सलाहकार ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाए लेकिन वह इस बात को लेकर दंढ थे की खुशचेव से मिसाइल और परमाणु हथियारों को हटा ले कैनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिका जंगी बेडों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए इस तरह अमेरिका सोवियत संघ को मामले में के प्रति अपनी गंभीरता की चेतावनी दे देना चाहता था ऐसी स्थिति में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना जाता है इस संघर्ष की आशंका ने पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया यह टकराव कोई आम युद्ध नहीं होता अंततीर: दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का फैसला किया और दुनिया ने चैन की सांस ली सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापिस का रुख कर लिया .
क्यूबा मिसाइल संकट को शीतयुद्ध का चरम बिंदु भी कहा जाता है .
शीत युद्ध क्या है
शीत युद्ध कोई वास्तविक युद्ध नहीं है बल्कि इसमें केवल युद्ध की संभावना ही बनी रहती है और इसमें संघर्ष एवं तनाव की स्थिति रहती है इसी को शीतयुद्ध कहा जाता है ।
दूसरे विश्व युद्ध का अंत समकालीन विश्व राजनीति का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है सन 1945 में मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्रों के बीच दूसरे विश्व युद्ध (1939- 1945) की समाप्ति हो गई ।मित्र राष्ट्रों की अगुआई अमेरिका ,सोवियत संघ,ब्रिटेन ,और फ्रांस कर रहे थे धुरी राष्ट्रों की अगुआई जर्मनी, इटली और जापान के हाथ में थी इस युद्ध में विश्व के लगभग सभी ताकतवर देश शामिल थे यह युद्ध यूरोप से बाहर के इलाके में भी फैला और उसका विस्तार दक्षिण पूर्व एशिया चीन बर्मा तथा भारत के पूर्वतर तक के कुछ हिस्सों तक था ।इस युद्ध में बड़े पैमाने पर जनहानि और धनहानि हुई 1914 से 1918 के बीच हुए हमले विश्व युद्ध ने विश्व को दहला दिया था लेकिन दूसरा विश्व युद्ध इससे भी ज्यादा भारी पड़ा ।
दो धुवीय विश्व का आरंभ
महाशक्तियों के नेतृत्व में गठबंधन की व्यवस्था से पूरी दुनिया के दो खेमों में बांट जाने का खतरा पैदा हो गया यह विभाजन सबसे पहले यूरोप में हुआ पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देशों में अमेरिका का पक्ष लिया जबकि पूर्व यूरोप सोवियत खेमे में शामिल हो गया इसलिए यह खेमा पश्चिमी और पूर्वी गठबंधन भी कहलाते हैं
नाटो की स्थापना उत्तरी अमेरिका और उसके सहायक देशों ने मिलकर की थी ।
नाटो (Nato)क्या है
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन .
North Atlantic Treaty organisation .
नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 में हुई थी ।
इस संगठन का उद्देश्य यह था कि इसमें सभी मिलजुल कर रहे और किसी एक पर हमला हो तो सभी उसे अपने ऊपर हमला मानेंगे और मिलजुल कर मुकाबला करेंगे ।
सीटों की स्थापना उत्तरी अमेरिका और उसके सहायक देशों ने की थी
सीटों (seato)क्या है
दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन .
south east Asia Treaty organisation .
इसकी स्थापना 1954 में हुई थी
इस संगठन का उद्देश्य साम्यवादीयो की विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण पूर्व एशिया को बचाना .
सेंटो की स्थापना उत्तरी अमेरिका और उसके सहायक देशों ने मिलकर
सेंटो(cento)क्या है
केंद्रीय संधि संगठन .
Central Treaty organisation
इसकी स्थापना 1955 में हुई थी .
इस संगठन का उद्देश्य सोवियत संघ को मध्य पूर्व से दूर रखना और साम्यवाद के प्रभाव को रोकना .
सोवियत संघ ने 1955 में वारसा संधि की थी
इस संधि का मुख्य उद्देश्य 'नाटो' में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना ।
महाशक्ति छोटे देशों को अपने गुट में शामिल क्यों करती थी ।
इसके मुख्य कारण
क) महत्वपूर्ण संसाधनों (जैसे तेल और खनिज )
ख)भू- क्षेत्र (ताकि यहां से महाशक्तियां अपने हथियारों और सेनाओं का संचालन कर सके )।
ग)सैनिक ठिकाने (जहां से मां शक्तियां एक दूसरे- की जासूसी कर सके )।
घ)आर्थिक मदद (जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे छोटे देश सैन्य- खर्चे वहन करने में मददगार हो सकते थे )।
छोटे देशों को महाशक्तियों में शामिल होने क्या लाभ होता था ।
क) सुरक्षा का वायदा मिला।
ख) सैन्य सहायता मिल जाती है ।
ग) हत्यारों और आर्थिक मदद मिलती है ।
शीत युद्ध के दायरे.
1)-1948 में बर्लिन की नाकेबंदी ।
2)-1950 में कोरिया संकट ।
3)-1954 से 1975 तक वियतनाम में अमेरिका हस्तक्षेप ।
4)-1956 हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप ।
5)-1962 में क्यूबा मिसाइल संकट ।
दो ध्रुवीता को चुनौती
1)-गुटनिरपेक्ष आंदोलन एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र राष्ट्र के समक्ष अपनी स्वतंत्र एवं प्रभुसत्ता को बनाए रखने का तीसरा विकल्प था- गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल हो जाना ।
2)-गुट निरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन 1961 में बेलगेड( युगोस्लाविया की राजधानी) में हुआ जिसकी नींव 1955 में एफो एशिया सम्मेलन में रखी गई (बांडुग सम्मेलन )इस आंदोलन के संस्थापक देश के नेता यह थे -
1)- संस्थापक नेता - संस्थापक देश
2)- पं. जवाहरलाल नेहरू - भारत
3)- कर्नल नासिर - मिस्त्र
4)- डा. सुकणी - इंडोनेशिया
5)- मार्शल टीटो - युगोस्लाविया
6)- वामे एनकुमा - धाना
3) 17 वें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का आयोजन वेनेजुएला के भागीरिता दीप में सितंबर 2016 को किया गया । वर्तमान में इस आंदोलन के सदस्य की संख्या 120 है साथ ही साथ वर्तमान से इसके 17 देश या 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर्यवेक्षक है इस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुधार, पश्चिम एशिया की स्थिति, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास शरणार्थी समस्या और परमाणु निशस्त्रीकरण जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था( N.I.E.O) -
972 में यूएनओ के व्यापार एवं विकास आंदोलन(UNCTAD) में विकास के लिए एक नई व्यापार नीति का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया ताकि धनी देशों द्वारा नव स्वतंन्त्र गरीब देशों का शोषण ना हो सके ।
भारत और शीत युद्ध -शीतयुद्ध के दौरान भारत में नव स्वतंत्र देशों का नेतृत्व किया तथा अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा किया। और दोनों महाशक्तियो के मतभेदों को भी दूर करने का प्रयास किया ।
शस्त्र नियंत्रण संधियाँ -
L.T.B.T - सीमित परमाणु परीक्षण संधि -5 अगस्त 1963.
SALT - सामारिक अस्त्र परिसीमन वर्तन - 1) 26 मई 1972. (2)18 जून 1972.
START - सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि - 1)31 जुलाई 1991 (2).3 जनवरी 1993
N.P.T - परमाणु अप्रसार संधि -1 जुलाई 1968
(पांच परमाणु संपन्न देश फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस (पूर्व सोवियत संघ )ही परमाणु परीक्षण कर सकते थे अन्य देश नहीं ।).
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